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लेखनी कहानी -02-Aug-2023 ब्लैक रोज

भाग 8 
सलीम की मौत की सूचना मीडिया से पुलिस को मिली । पुलिस तुरंत सक्रिय हो गई और आनन फानन में डीसीपी मुंबई सेन्ट्रल राजेश ने इंस्पेक्टर रोहन को फोन कर कहा 
"रोहन, तुम्हारे एरिया में मशहूर डॉन सलीम की मृत्यु हो गई है । वैसे तो वह इतना कुख्यात है कि उसकी हत्या करने वाला कोई पागल इंसान ही होगा क्योंकि उसके गुर्गे उस हत्यारे को छोड़ेंगे नहीं । लेकिन चूंकि वह बड़े बड़े राजनीतिक दलों को "फंड" देता था इसलिएउसके पक्ष में बड़े बड़े नेता खड़े नजर आयेंगे । 

मीडिया में उसकी मौत को रहस्यमय तरीके से बताया जा रहा है । वह मीडिया को पैसे देकर उसका मुंह या तो बंद कर देता था या मीडिया को उसके पक्ष में बोलने को मजबूर कर देता था । मीडिया भी उसके दबदबे से और उसके दिये हुए पैसों की ताकत से उसे महान समाज सेवी बताकर उसका महिमामंडन करता था । ऐसे आदमी के पक्ष में बहुत सारे लोग खड़े मिल जायेंगे लेकिन उसके विरोध में बोलने वालों को तुम ढूंढते ही रह जाओगे । अत: तुरंत मौके पर जाओ और जाकर पता करो कि सलीम की मौत एक सामान्य मौत थी या एक हत्या ?  और अपना इनवेस्टिगेशन तुरंत प्रारंभ कर दो । लाश का पोस्टमॉर्टम मेडीकल बोर्ड से करवा लो । मैं थोड़ी देर में मौके पर पहुंचूंगा,  तब तक तुम सारी तैयारियां करके रखना । ठीक है ? जाओ, तुरंत निकलो" । डीसीपी राजेश ने आदेश देते हुए कहा । 

"यस सर" । रोहन ने सैल्यूट ठोकते हुए कहा और टेलीविजन ऑन करके न्यूज सुनने लगा जिससे वह मौके पर पहुंच कर समुचित कार्यवाही की व्यवस्था कर सके । इतने में उसकी पत्नी जिज्ञासा ने उसका खाना टेबल पर लगा दिया । डिनर को देखकर रोहन ने कहा "अभी खाने का टाइम नहीं है जान । एक कुख्यात बदमाश इस धरती से "उठ" गया है , उसकी मौत की छानबीन अभी करनी है । इसके लिए मुझे तुरंत मौके पर जाना होगा इसलिए मैं आकर खाना खा लूंगा" । 

"मुझे पता है कि तुम एक बार घर से निकलते हो तो कब आते हो । केस टिपिकल लग रहा है ,पता नहीं वहां कितना टाइम लगे ? खाना मैंने टेबल पर लगा दिया है, अब इसे खाकर ही जाना । खाना खाने में बहुत अधिक समय नहीं लगेगा, जान । थोड़ा अपनी ओर भी ध्यान दो । चौबीसों घंटे नौकरी करते हो, अगर टाइम पर खाना नहीं खाओगे तो नौकरी कैसे कर पाओगे" ? 

जिज्ञासा की बातों में खालिस सच्चाई थी जिसे रोहन भी जानता था । लेकिन डीसीपी साहब ने हुक्म दे दिया था कि तुरंत मौके पर जाओ और यह भी कह दिया था कि वे भी मौके पर आयेंगे, इसलिए उसका अभी जाना लाजिमी हो गया था । वह खाना टेबल पर ही छोड़कर उठ खड़ा हुआ और उसने जिज्ञासा को एक बार "हग" किया फिर वह अपने घर से बाहर निकल गया । उसकी गाड़ी वॉकहर्ड अस्पताल की ओर दौड़ने लगी । 

वॉकहर्ड अस्पताल में रोहन के आने तक अच्छी खासी भीड़ इकठ्ठी हो गई थी । सलीम के रिश्तेदार और परिचित वहां पर इकठ्ठे होने लग गये थे और वे सब मिलकर पुलिस, प्रशासन के खिलाफ अपने गुस्से का प्रदर्शन कर रहे थे । जैसे ही पुलिस की वर्दी में रोहन वहां पहुंचा उसे देखकर सब लोग उस पर टूट पड़े । 
"अब आया है साला ठुल्ला ! अब क्या लेने आया है यहां ? अब तो सलीम की हत्या हो चुकी है । अब क्या फातिहा पढ़ने आया है ? जब उसकी हत्या हुई थी तब पुलिस क्या कर रही थी ? पुलिस ने पहले से ही सुरक्षा क्यों नहीं दी थी सलीम को ? सलीम ने कितनी बार प्रार्थना की थी कि उसकी जान पर खतरा मंडरा रहा है । उसे रोज धमकियां मिल रही हैं लेकिन पुलिस आंख बंद कर सोती रही । यदि पुलिस ने उसे पहले ही सुरक्षा दे दी होती  तो आज सलीम जिन्दा होता । पुलिस की लापरवाही से सलीम की जान गई है इसलिए पुलिस ही इस हत्या के लिए जिम्मेदार है" । एक व्यक्ति चिल्लाकर बोला और उसने अचानक रोहन पर आक्रमण कर दिया । 

रोहन के साथ चार पुलिस कर्मी भी थे । उन चारों पुलिस कर्मियों को सलीम के परिचितों और रिश्तेदारों ने घेर लिया तथा उन्हें घेरकर उन पर लात घूंसे बरसाने लगे । बेचारे पुलिस कर्मी इस आक्रमण से अनजान थे इसलिए वे भीड़ के हत्थे चढ़ गये और पिटते रहे । 

अपनी और अपने पुलिस कर्मियों की जान संकट में देखकर इंस्पेक्टर रोहन ने अपना रिवॉल्वर निकाल कर पहले दो हवाई फायर किये लेकिन उनका भीड़ पर कोई असर नहीं हुआ । भीड़ पूरी तरह हिंसा पर उतारू थी । जो लोग सलीम के साथ रहते थे और लोगों को गाजर मूली की तरह काट देते थे , वे पुलिस को क्या समझते ? उन्होंने रोहन को घेरकर उसे मारना शुरू कर दिया । 

रोहन ने अपनी जान बचाने के लिए अपने रिवॉल्वर से गोलियां चलानी शुरू कर दी । रिवॉल्वर में 6 गोलियां होती हैं उनमें से दो तो उसने हवाई फायर में बेकार कर दी थी । शेष चार गोली से चार उपद्रवी मारे गये । जब उसकी गोलियां खत्म हो गईं तो उसे भीड़ ने लपक लिया और लात घूंसों से उसकी "खातिरदारी" करने लगे । रोहन की पिटाई इतनी निर्ममता से की गई कि उसकी समस्त हड्डियां टूटकर चकनाचूर हो गईं । 

उधर चारों पुलिस कर्मियों को भी उपद्रवी भीड़ ने मारकर फेंक दिया था और उनके शवों को अपने पैरों से कुचल दिया गया । भीड़ वहशी बनकर वॉकहर्ड अस्पताल में तोड़ फोड़ करने लगी । मरीजों , उनके परिजनों , डॉक्टर, नर्स और अन्य स्टॉफ को पकड़ पकड़ कर भीड़ मारने लगी । जिसे जहां जगह मिली वह उधर ही भाग गया । पूरा अस्पताल तहस नहस कर दिया गया । जो महिला जिस किसी उपद्रवी के हाथ पड़ी, उसने उसके साथ किसी कोने में जाकर दुष्कर्म किया और भाग खड़ा हुआ । बेचारी महिला लुटी पिटी रोती रह गई । 

जब तक पुलिस की भारी फोर्स आती तब तक अधिकांश उपद्रवी भाग खड़े हुए । जो लोग अभी भी अस्पताल में तोड़ फोड़ कर रहे थे, मारपीट कर रहे थे , उन पर पुलिस ने अंधाधुंध लाठियां भांजी । गोलियां बरसाई । तब जाकर यह उपद्रव काबू में आ सका । 

इस देश में एक वर्ग ऐसा है जो सदैव इन उपद्रवियों के साथ खड़ा होता है । इनमें कुछ जाने माने पत्रकार और मीडिया हाउस हैं इन्हें "पत्तलकार" और "खैराती" भी कहते हैं । कुछ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता और राजनीतिक दल हैं जो अपने वोट बैंक के लिए आतंकवादियों को "मासूम" बताते हैं और उनके लिये इनके आंसू थमने का नाम नहीं लेते हैं । ये नेता "टुकड़े टुकड़े गैंग" के पक्ष में खड़े होकर देश के साथ गद्दारी करते हैं फिर भी खुद को "देशभक्त" बतलाते हैं । ये नेता लोग कभी भी शहीद पुलिस वालों के पक्ष में खड़े नहीं होते हैं , अपितु जेहादियों, आतंकियों, उपद्रवियों और नक्सलियों के समर्थन में सदैव खड़े रहते हैं । 

इन राजनीतिक दलों के पाले हुए कुछ तथाकथित स्वयं सेवी संगठन हैं जो चीन जैसे दुश्मन देशों से पैसे लेकर देश के खिलाफ प्रोपेगैंडा चलाते हैं और अपने हाथों में मोमबत्ती लेकर इनके पक्ष में धरना प्रदर्शन करते रहते हैं ।  इन्हें आधुनिक भाषा में "धरनाजीवी" कहते हैं । ये लोग झूठे साक्ष्य गढने से लेकर झूठे और जाली दस्तावेज भी तैयार करके अपना देश विरोधी एजेंडा चलाते हैं और इन राजनीतिक दलों तथा भारत विरोधी देशों से पैसा लेते हैं । 

कुछ अलग प्रकार के लोग भी हैं जिन्हें सोशल एक्टिविस्ट, मानवाधिकारवादी और जनहित याचिका धर्मी कहते हैं । इनका काम है हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका लगाकर इन आतंकवादियों, उपद्रवियों, जेहादियों , अराजकतावादियों, नक्सलियों, देशद्रोहियों, दंगाइयों की पैरवी करना और इन्हें महान देशभक्त घोषित करवा देना है । यह लॉबी सर्व शक्तिमान है । इनमें इतनी ताकत है कि ये रात को दो बजे भी सुप्रीम कोर्ट खुलवा सकते हैं । अवकाश के दिन भी किसी आत॔की, आदतन अपराधी , उपद्रवी को जमानत दिलवा सकते हैं । जेल से बचाने के लिए नक्सलियों को उनके अपने घर को सुप्रीम कोर्ट से "जेल" घोषित करवा लेते हैं और उन्हें मौज करने का सुअवसर प्रदान कर देते हैं । इन लोगों ने कभी भी प्रताड़ित, पीड़ित लोगों की आवाज सुप्रीम कोर्ट में नहीं उठाई है । इस लॉबी ने जब भी कोई आवाज उठाई , देश , समाज और मानवता के दुश्मनों के पक्ष में ही उठाई है । 

सुप्रीम कोर्ट में लगभग 70000 हजार से अधिक मुकदमे विचाराधीन हैं जिनमें तारीख पड़ना ही बहुत बड़ी उपलब्धि होती है । मगर इन लोगों में इतनी शक्ति है कि ये कोई भी केस सीधा सुप्रीम कोर्ट ले जा सकते हैं और सुप्रीम कोर्ट भी सारे मुकदमे छोड़कर सबसे पहले इनके केसों को सुनकर उन पर हाथों हाथ फैसला भी दे देता है । 

दरअसल इस देश में चुनी हुई सरकार के पास तो वस्तुत: कोई शक्ति है ही नहीं । सरकार चुनाव आयोग का सदस्य नियुक्त नहीं कर सकती है , क्योंकि इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से फैसला करवा लिया है कि अब वह भी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ही नियुक्त करेंगे । सीबीआई का निदेशक भी सरकार नहीं मुख्य न्यायाधीश ही नियुक्त करेंगे । और तो और प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक का कार्यकाल कब तक रहेगा यह भी सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा । सबसे अधिक हास्यास्पद बात तो यह है कि संसद द्वारा पारित कानून को भी ये लोग सुप्रीम कोर्ट से निरस्त करवा लेते हैं । अब जनता सोचने लगी है कि जब इस सरकार को कोई पॉवर ही नहीं तो इसे चुनने से भी क्या फायदा ? क्यों न इन "जनहित याचिका धर्मियों" को ही चुन लिया जाये ? क्योंकि होगा तो वही जो ये लोग चाहेंगे । मजे की बात देखिये कि धारा 370 को खत्म हुए पूरे 4 साल हो गये हैं लेकिन ये याचिका धर्मी उस पर सुनवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को विवश कर देते हैं । इन याचिका धर्मियों को पूरा देश नमन करता है । 

खैराती मीडिया , पत्तलकार, नेता , स्वयंसेवी संगठन, धरनाजीवी और याचिकाधर्मियों को सलीम की मौत और उसके समर्थकों द्वारा अस्पताल में की गई हिंसा , पुलिस की गोलीबारी और उससे मरे हुए लोगों का मुद्दा उठाने के लिए इन्हें बड़ा भारी काम मिल गया था । इसमें पैसा भी खूब मिलने वाला था । इसलिए वे सब अपने अपने कामों में लग गये । 

श्री हरि 
16.8.23 

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